अब भी नहीं उतरा
वो मेरे जिस्म में उलझा रहा, न रूह में उतरा, ख़यालों में रहा बस वो लफ्फ्जों में नहीं उतरा । सोचा नहीं था इस कदर वो बदल जाएगा, कच्चा रंग था इसी बरसात में उतरा । उसने तो कहा था खुश है वो इस दोस्ती में ही मगर अब क्या हुआ उसका चेहरा है क्यूँ उतरा । तूफां का नहीं अब डर मगर वो सोचता क्या है, उतर जाये ये लगता है कि दरिया भी है उतरा । क़स्बाई मुहब्बत में कशिस तो खूब रहती है अच्छा है कि फूहड़पन शहरों का नहीं उतरा। ये मालूम है मुझको वो दिल में सोचते क्या हैं, मुझे इतनी तस्सली है जुबां पर वो नहीं उतरा । वो असली है नहीं फिर भी वो सोने सा दमकता है, नहीं मालूम है उसको कि अभी पानी नहीं उतरा । मुद्दत हुई ये दिल भी कब का भर गया है अब, ज़रा सी है कमी बाँकी वो आँखों से नहीं उतरा । हमीं ने प्यार में उसको अपने सिर चढ़ाया था, न जाने क्यूँ ज़मीं पर वो अब भी नहीं उतरा । वो मिलता जब भी हमसे वो हमेशा मुस्कराता है, न जाने बात क्या है शस वो दिल में नहीं उतरा । सुधीर है नहीं ऐसा की उसको भूल पाओगे, जिस पर चढ़ गया है रंग अपना फिर नहीं उतरा ।