सफलता के सोपान

जो गलता बीज मिट्टी में, वही अंकुर है बन पाता,
सहकर ताप-शीतलता ही पादप वृक्ष बन जाता ,
जो प्रतिपल सीख है लेता, न डरता है विफलता से,
वही मानव वरण करता विजयश्री का सफलता से ।

जो बढ़कर थाम लेता है स्वयं पतवार हाथों से,
जो डरता है नहीं तूफान से या झंझावातों से,
लहरें भी पराजित होती हैं मन की सबलता से,
वही मानव वरण करता विजयश्री का सफलता से ।

जिसका लक्ष्य आंखों में सतत और कर्म में दृढ़ता,
उसी का है सफल जीवन वही मानक नए गढ़ता,
जो पीकर आँसुओं का जल नहीं रोता विकलता से,
वही मानव वरण करता विजयश्री का सफलता से ।

जो डरकर हैं नहीं रुकता  न अवरोधों से घबराता,
उसकी राह का अवरोध भी सोपान बन जाता,
जिसके मन,वचन और कर्म तीनों मुक्त हैं छल से,
वही मानव वरण करता विजयश्री का सफलता से ।

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