आपके द्वार- पहुंचा हरिद्वार
इतिहास बताता है हमको कि ऐसा पहली बार हुआ,
घर-घर गंगाजल पहुँचा और कुंभ स्वयं साकार हुआ।
जब देवलोक से स्वयं सुरसरि कल-कल करती आई हैं,
फिर क्यों मूर्छित पड़ी संस्कृति, मानवता मुरझाई है,
नव सृजन सैनिकों उठो-चलो अब, ये व्याकुल संसार हुआ,
घर-घर गंगाजल पहुँचा और कुंभ स्वयं साकार हुआ।
बारह वर्षों से तृषित मनुज, आतुर था तट पर आने को,
मां गंगा भी थीं व्याकुल, अमृत-घट फिर छलकाने को,
था कठिन बहुत सबका आना, चिंतातुर ये संसार हुआ,
घर-घर गंगाजल पहुँचा और कुंभ स्वयं साकार हुआ।
अमृत की हैं दिव्य बूँद, ये ऋषियों का चरणामृत है,
सबको देगा यह प्राण नया जो हैं सुसुप्त, जो भी मृत हैं,
सबतक गंगाजल पहुंचाकर, जन-जन का उद्धार हुआ
घर-घर गंगाजल पहुँचा और कुंभ स्वयं साकार हुआ।
वरदान सभी इसको समझें ये है प्रसाद देवालय का,LP in mlm
आशीष भरा है ऋषियुग्म का, इसमें प्राण हिमालय का,
**आज बहुत हर्षित हैं परिजन, युगतीर्थ प्रगट निज द्वार हुआ, / सजल-प्रखर प्रज्ञा है इसमें तीर्थ प्रगट निज द्वार हुआ,
घर-घर गंगाजल पहुँचा और कुंभ स्वयं साकार हुआ।
-सुधीर भारद्वाज
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