भाग्य नहीं गुण कर्म प्रधान

*भाग्य नहीं गुण-कर्म प्रधान*

यदि भाग्य मात्र होता सबकुछ,
पुरुषार्थ मनुज फिर क्यों करता,
सप्त सिंधु के पार कभी,
मानव फिर कदम नहीं धरता ।1|

उच्च हिमालय शिखरों पर,
हमने ध्वज अपने फहराये,
नभ के पार भी पहुंचे हम,
पदचिन्ह चाँद पर धर आये |2|

मरुथल की बंजर मिट्टी में,
उद्यान लगाये हैं हमने
धरती के अंदर जाकर भी,
नवरत्न निकाले हैं हमने ।3|

हमने अपने भुजबल से,
नदियों का मार्ग भी मोड़ा है,
हमने अपने ही हाथों  ,
गिरि का घमंड भी तोड़ा है ।4|

कितना भी भीषण सागर हो,
हमने हार न मानी है,
उत्ताल विकट लहरों से भी,
हमने लड़ने की ठानी है ।5|

सुख दुःख तो ताना बना है 
इसको जिसने पहचाना है,
उसका जीवन काँटों में भी,
फूलों सा मुस्काना है ।6|


हमको न पराजय की चिन्ता,
न जय पर है अभिमान हमें ,
हमको बस रहना कर्मनिरत,
चाहे मान मिले-अपमान हमें |7|
               *-सुधीर भारद्वाज*

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