नव वर्ष
अब रोना धोना बंद करो, अवसादों का अवसान करो, आने वाला है वर्ष नया, कुछ नए लक्ष्य संघान करो । ये आराम थकन की बातें तो, अच्छी लगती कुछ समय मगर, ये जीवन है चलते जाना, पिछड़ेंगे रुक गए अगर । मृग मरीचिका आयेंगी, मन को भी भटकाएंगी, तुम मत आना उस झांसे में, वो कसमें दे समझाएंगी । अपने विवेक की बांह पकड़, जो आगे बढ़ता जाएगा, हो लक्ष्य भले दुष्कर कितना, निश्चित पूरा हो जाएगा । जो गुजर चुके इन राहों से, उनका इतिहास पुराना है, अपना तो है लक्ष्य यही, खुद का इतिहास रचाना है । हम उस माटी के वंशज हैं, जिसमें जनमें हैं कर्मवीर, जो सत्यमार्ग से डिगे नहीं, तब ही कहलाये धर्मवीर । कहता सुधीर, न बनो अधीर, जो होगा देखा जाएगा, है कृष्णपक्ष जाना निश्चित, तब शुक्ल पक्ष फिर आएगा । - सुधीर भारद्वाज