जीजी हैं हम सबकी माँ

जब हाथ सर पर आपका,
तब चिंता क्या संसार की,
आपको सब सौंपकर,
चिंता मिटी घरबार की ।

माँ भगवती का रूप ही है   ,
और शक्ति इस परिवार की,
हमको गोदी में बिठा,
हैं स्नेह से पुचकारतीं ।

एक *चिन्मय* ही नहीं ,
संतान  हम सब आपकी,
आपने उर से लगा
थपकी हमें  दी प्यार की ।

जब कभी मन छटपटाता
है उदासी घेरती,
तब आप ही संतोष दे
पीड़ा हरें परिवार की ।

उत्साह जब होता विगत ,
आशा का दामन छूटता,
तब आप ही बढ़कर स्वयं,
बाहें हमारी थामती ।

द्वेष की लहरें बड़ी ,
हैं नाव को ही खींचती ,
आप सा नाविक मिला, 
औकात क्या मझधार की |

जो नहीं पाया समझ,
अनमोल ममता आपकी,
उसका जीवन है वृथा
सीमा नहीं दुर्भाग्य की ।
                   
               - सुधीर भारद्वाज 

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