कुछ देखा कुछ अनदेखा
इस दुनिया में इन आखों ने,
क्या क्या मंजर देखा है,
अन्न उगाने वालों को भी,
भूखों मरते देखा है ।
न जाने क्या राज छुपा है,
झूठ का पलड़ा भारी है,
झूठों के झुण्डों से अक्सर,
सच को डरते देखा है ।
ओ!पानी के पहरेदारों
आग लगी है बस्ती में,
तुमको हमने तरणताल में,
जलक्रीड़ा करते देखा है ।
जिनकी नेकदिली के किस्से,
गूंज रहे अखबारों में,
उनकी आस्तीन में हमने,
सांपों को पलते देखा है ।
जिन राहों में धनवानों के,
शव पर फूल बरसते हैं,
उसी राह में कुछ लोगों को
कांटों पर चलते देखा है ।
क्या क्या मंजर देखा है,
अन्न उगाने वालों को भी,
भूखों मरते देखा है ।
न जाने क्या राज छुपा है,
झूठ का पलड़ा भारी है,
झूठों के झुण्डों से अक्सर,
सच को डरते देखा है ।
ओ!पानी के पहरेदारों
आग लगी है बस्ती में,
तुमको हमने तरणताल में,
जलक्रीड़ा करते देखा है ।
जिनकी नेकदिली के किस्से,
गूंज रहे अखबारों में,
उनकी आस्तीन में हमने,
सांपों को पलते देखा है ।
जिन राहों में धनवानों के,
शव पर फूल बरसते हैं,
उसी राह में कुछ लोगों को
कांटों पर चलते देखा है ।
- सुधीर
5 जुलाई 2024
Comments
Post a Comment