सब तरफ फैली हुई है अब उदासी

*सब तरफ बिखरी हुई है अब उदासी*

आजकल शामें उदास सब घरों में,
लोग रहते बदहवास अब घरों में। 

रिश्तों का कोई न कोई नाम है पर
अजनबी से लोग रहते अब घरों में । 

अब नहीं सुनता कहानी कोई बच्चा,
गूँगी हो गयी सब किताबें अब घरों में। 

घर के  आँगन अब सभी सूने पड़े हैं,
हर किसी का अपना कोना है घरों में । 

घर की अटारी में पड़े चौपड़-खिलौने,
हाथ में मोबाइल सबके अब घरों में, 

राह तकता गाँव की अमराई में झूला,
पढ़ के, थक के सो गए बच्चे घरों में । 

खिड़कियाँ सब बन्द रखते हैं  यहाँ पर,
कोई दहशत सी भरी है अब घरों में । 

                           - सुधीर भारद्वाज

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