लोग

इस  दुनिया में जाने कितने
हैं जाने अनजाने लोग,
झूठे दिल से सच्ची कसमें  ,
हरदम खाने वाले लोग ।

हाथों पर उभरी रेखा से ,
जीवन नहीं दिशा पाता है,
खुद भी किस्मत पर रोते हैं ,
भाग्य बताने वाले लोग ।

कभी  नहीं सोचा करते हैं ,
फल इनमें कब आएगा,
दिल से कितने दरियादिल हैं  ,
पेड़ लगाने वाले लोग ।

उनसे क्यों उम्मीद  रक्खें हम ,
कभी काम में आएंगे,
फूल नहीं बांटा करते हैं,
आग लगाने वाले लोग ।

श्वेत कपोत उड़ाकर खुश है ,
खादीधारी नेतागण,
क्योंकि सरहद पर खड़े हुए हैं,
जान लुटाने वाले लोग ।

ये जंगल है यहाँ पे कोई ,
नियम नहीं है चलने का,
खुद को अपवाद बना लेते हैं,
नियम बनाने वाले लोग ।

जिन भवनों की भव्य कहानी,
पढ़कर सुनकर सब खुश हैं,
जने कबके भुला चुके हम,
नींव बनाने वाले लोग ।

- सुधीर भारद्वाज

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