इंसान तो इंसान है

जिन्दा लाशें घूमती है, 
मर चुका इन्सान है, 
बस शहर के नाम पर 
पसरा हुआ शमसान है ।

चौपाल की बातों से गायब 
खेत हैं खलिहान हैं
अब मौसमों का भी कोई 
करता नहीं अनुमान है।

अब किसी के जख्म पर 
रोना सिसकना जुर्म है, 
बन्द हैं सब खिड्‌कियाँ, 
सहमा हुआ इन्सान है।

इंद्रधनुषी रंग जब
बिखरे हुए सर्वत्र हैं
क्यों रंग सबने चुन लिये
सबकी अलग पहचान है ।

देह की देहरी को ही
जो लक्ष्य अपना मानते हैं
प्यार की राहें सभी
उनके लिए सुनसान हैं ।

Comments

  1. सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति ,इंसान तो इंसान है,,, प्रणाम भाईसाब

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  2. वर्तमान का उत्तम चित्रण . इंद्रधनुषी रंग .... सुंदर भाव । चित्र भी सटीक लगाया है।

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    1. उत्साहवर्धन के लिए आभार

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