अगर कुछ ऐसा हो जाये

पकड़ लें हाथ गुरुवर का
तो बेड़ा पार हो जाये ,
अगर हम खुद सुधर जायें
तो युग निर्माण हो जाये |

नहीं रह पायेगा कोई 
विवश साधन अभावों में, 
यदि मिल बाँटकर खाना
हमें स्वीकार हो जाये ।

करेंगे क्या बनाकर अब
ये महलों गुम्बदों को हम, 
यदि घर से दु:खी होकर
जुदा सन्तान हो जाये।

बाँटे रेवड़ी अन्धे यदि
अपनों को चुन चुनकर कर, 
है मुमकिन उस व्यवस्था में
नगर सुनसान हो जाये ।

मिटा दें अब लकीरें हम 
कनिष्ठों और वरिष्ठों की, 
सही सर्थों में ये गायत्री -
का परिवार हो जाये ।

नहीं है दूर मन्जिल अब,
कोई दुर्गम ठिकाना भी,
हमारी कोशिसें सच में 
अगर अभियान हो जायें |

निकलेगा नया सूरज,
तिमिर इतिहास होगा अब,
यदि नव पीढ़ियों के हाथ में -
फिर मशाल हो जाये।

- सुधीर भारद्वाज

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