होली के अवसर पर रचित एक छंद

 


मन में उमंग नहीं, प्यार वाला रंग नहीं,

होली की परम्परा का, मान क्यों गिराते हो |


खेलने का ढंग नहीं,  अच्छा ये हुड़दंग नहीं

होलिका-प्रहलाद की, कथा भूल जाते हो | 


मन में मलाल भरा,  तन पे गुलाल भरा,

रीति और रिवाज़ की, हंसी क्यों उड़ाते हो | 


तुम नहीं होश में, मदभरे जोश में, 

अटपटे स्वांग कर, जोकर कहाते हो ।

                             -सुधीर भारद्वाज

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