याद तुम्हारी
वो हमेशा तो नहीं पर याद अक्सर आती है,
जैसे स्वाति बूँद गिरकर सीप में जम जाती है।
स्नेह कम होता नहीं यदि मीत सच्चा रूठता,
यह खिलौना है नहीं जो ठोकरों से टूटता,
प्रेम की खुशबू सदा इस तन की देहरी से गुजर ,
मन के कोने में सिमटकर याद सी बन जाती है ।
जैसे स्वाति बूँद गिरकर.........
ये जरूरी भी नहीं कि उम्रभर महका करें,
मौसम की पहली बारिशों में बूँद जब नभ से गिरे,
तब धरा के तप्त अधरों पर नमी पलभर ठहर,
धरती की सोंधी गन्ध वो सबके मन को भाती है ।
जैसे स्वाति बूँद गिरकर.........
जब कोई चंचल नदी पर्वत शिलाएं तोड़कर,
सिंधु के सपने लिए बहती है सबको छोड़कर,
फिर कहीं कोई रुकावट बनती न बाधा मार्ग की,
एक छोटी सी नदी सागर स्वयं बन जाती है ।
वो हमेशा तो नहीं पर याद अक्सर आती है,
जैसे स्वाति बूँद गिरकर सीप में जम जाती है।
जैसे स्वाति बूँद गिरकर सीप में जम जाती है।
स्नेह कम होता नहीं यदि मीत सच्चा रूठता,
यह खिलौना है नहीं जो ठोकरों से टूटता,
प्रेम की खुशबू सदा इस तन की देहरी से गुजर ,
मन के कोने में सिमटकर याद सी बन जाती है ।
जैसे स्वाति बूँद गिरकर.........
ये जरूरी भी नहीं कि उम्रभर महका करें,
मौसम की पहली बारिशों में बूँद जब नभ से गिरे,
तब धरा के तप्त अधरों पर नमी पलभर ठहर,
धरती की सोंधी गन्ध वो सबके मन को भाती है ।
जैसे स्वाति बूँद गिरकर.........
जब कोई चंचल नदी पर्वत शिलाएं तोड़कर,
सिंधु के सपने लिए बहती है सबको छोड़कर,
फिर कहीं कोई रुकावट बनती न बाधा मार्ग की,
एक छोटी सी नदी सागर स्वयं बन जाती है ।
वो हमेशा तो नहीं पर याद अक्सर आती है,
जैसे स्वाति बूँद गिरकर सीप में जम जाती है।
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