सुख-दुख

सुख दुःख तो ताना-बाना है,
इसको जिसने पहचाना है,
उसका जीवन काँटों में भी,
फूलों सा मुस्काना है ।

भाग्य यदि होता सबकुछ,
पुरुषार्थ मनुज फिर क्यों करता,
सप्त सिंधु के पार कभी,
मानव फिर पाँव नहीं धरता ।

उच्च हिमालय शिखरों पर,
हमने ध्वज अपना फहराया,
नभ के पार भी पहुंचे हम,
उत्साह हमारा लहराया ।

मरुथल की बंजर मिट्टी में,
उद्यान लगाये हैं हमने
भूमि के अंदर जाकर भी,
नवरत्न निकाले हैं हमने ।

हमने अपने भुजबल से,
नदियों का मार्ग भी मोड़ा है,
अपने ही हाथों से हमने,
गिरी का घमंड भी तोड़ा है ।

कितना भी भीषण सागर हो,
साहस ने हार न मानी है
उत्ताल विकट लहरों से भी,
हमने लड़ने की ठानी है ।





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