लिखा था
उनके हिस्से में तो केवल शब्दों का व्यापार लिखा था,
हमने जब लिखना सीखा था, सबसे पहले प्यार लिखा था।
सावन की मेहँदी जो रचकर निखरी थी वो मिट भी गयी,
अब भी वैसी की वैसी है, जहाँ पे तेरा नाम लिखा था ।
जीवन के पन्नो पर अंकित इच्छाएँ मृग मरीचिका हैं,
इसीलिए तो हमने उसपर भी केवल वैराग्य लिखा था ।
न जाने कितने डूबे हैं केवल चुल्लूभर पानी में,
पत्थर भी वे तैर गये जिसपर केवल राम लिखा था ।
जो पथ पर थककर बैठ गए वो देर से मंज़िल पाएंगे,
अपनी किस्मत है कुछ ऐसी, कभी नहीं आराम लिखा था ।
न जाने कितने खंज़र हैं जिस्म में मेरे लगे हुए,
इस दिल पर जो जाकर बैठा उसपर तेरा नाम लिखा था ।
बहुत सुन्दर रचना। 💐🙏
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