मुक्तक-शब्दों में पिरोये मन के भाव
ये कविता मन के भावों में,
शब्द पिरोना है फिर से,
ये कविता सोयी चिंगारी,
को है जगाना अब फिर से ।1।
ये कविता उनपर है जिनने,
खुद के पाँव कुल्हाड़ी मारी,
ये कविता उनपर है जिनकी,
उतरी नहीं है अब भी खुमारी ।2।
इस कविता को पढ़कर सब,
कालनेमि छुप जाएंगे,
जिनके जख्म नहीं सूखे हैं,
क्या वो चुप रह पायेंगे ।3।
चुप रहना तो ऐसा जैसे,
मुंह में दही जमा रक्खा है,
चुप रहना तो ऐसा जैसे,
खुद को दास बना रक्खा है ।4।
जो चुप हैं उनसे है विनती,
मुँह खोलें कुछ तो बोलें,
जो चुप हैं मैं उनसे कहता ,
अपने मन की ग्रंथि खोलें ।5।
अब तो समय सही आया है,
अब दुष्टों से डरना क्या,
मरना एक बार होता है,
उससे पहले मरना क्या ।6।
जिनको लगता था कि सब,
आरोप सिद्ध हो जाएंगे,
उनके अरमानों के शव अब,
चील गिद्ध ही खाएंगे ।7।
उनका शोणित शुद्ध नहीं है,
उसमें बस गद्दारी है,
नमक हलाली कैसे हो जब,
कालनेमि से यारी है ।8।
उनकी बातों को तो कुछने,
सत्य वचन ही माना था,
मुंह मे राम बगल में छूरी,
कब उनने पहचाना था ।9।
राखी के धागों को जिनने,
तार-तार है कर डाला,
भाई का अभिनय ऊपर से,
अंदर था गड़बड़ झाला ।10।
केवल शतरंजी चालें ही,
जिनने थी दिन-रात चलीं,
उनके मन के मंसूबों की,
एक नहीं अब दाल गली । 11।
आग नहीं छुपती राखों से,
साथ हवा का जब पाती,
छोटी सी इक चिंगारी भी,
दावानल है बन जाती ।12।
जिनके मन में आग लगी है,
क्या अब वो छुप पाएंगे ?
जिनमे थोड़ी हया बची है,
क्या अब वो रुक पाएंगे ।13।
गायत्री परिवार बनाना,
बच्चों का कोई खेल नही,
लाखों लोगों का जुड़ जाना,
संयोगों का मेल नहीं ।14।
जिसने इसको तप से सींचा,
केवल वही जानता है,
जो अपना सर्वस्व लुटाये,
केवल वही मानता है ।15।
तुमने कैसे सोच लिया तुम
जो भी करोगे अच्छा है,
तुम ही हो एक काग सयाने,
बाकी सब जग कच्चा है ।16।
उनकी काली करतूतों से,
अपना कोई मेल नहीं ।
ये मिशन बुलेट ट्रेन है,
कोई पैसेंजर मेल नहीं ।17।
इन दागों को कालनेमियों ,
अब जाने कहाँ छुपाओगे,
रेत में गाड़ के अपना मुंह अब
शुतुरमुर्ग हो जाओगे ।18।
*- सुधीर भारद्वाज*
शब्द पिरोना है फिर से,
ये कविता सोयी चिंगारी,
को है जगाना अब फिर से ।1।
ये कविता उनपर है जिनने,
खुद के पाँव कुल्हाड़ी मारी,
ये कविता उनपर है जिनकी,
उतरी नहीं है अब भी खुमारी ।2।
इस कविता को पढ़कर सब,
कालनेमि छुप जाएंगे,
जिनके जख्म नहीं सूखे हैं,
क्या वो चुप रह पायेंगे ।3।
चुप रहना तो ऐसा जैसे,
मुंह में दही जमा रक्खा है,
चुप रहना तो ऐसा जैसे,
खुद को दास बना रक्खा है ।4।
जो चुप हैं उनसे है विनती,
मुँह खोलें कुछ तो बोलें,
जो चुप हैं मैं उनसे कहता ,
अपने मन की ग्रंथि खोलें ।5।
अब तो समय सही आया है,
अब दुष्टों से डरना क्या,
मरना एक बार होता है,
उससे पहले मरना क्या ।6।
जिनको लगता था कि सब,
आरोप सिद्ध हो जाएंगे,
उनके अरमानों के शव अब,
चील गिद्ध ही खाएंगे ।7।
उनका शोणित शुद्ध नहीं है,
उसमें बस गद्दारी है,
नमक हलाली कैसे हो जब,
कालनेमि से यारी है ।8।
उनकी बातों को तो कुछने,
सत्य वचन ही माना था,
मुंह मे राम बगल में छूरी,
कब उनने पहचाना था ।9।
राखी के धागों को जिनने,
तार-तार है कर डाला,
भाई का अभिनय ऊपर से,
अंदर था गड़बड़ झाला ।10।
केवल शतरंजी चालें ही,
जिनने थी दिन-रात चलीं,
उनके मन के मंसूबों की,
एक नहीं अब दाल गली । 11।
आग नहीं छुपती राखों से,
साथ हवा का जब पाती,
छोटी सी इक चिंगारी भी,
दावानल है बन जाती ।12।
जिनके मन में आग लगी है,
क्या अब वो छुप पाएंगे ?
जिनमे थोड़ी हया बची है,
क्या अब वो रुक पाएंगे ।13।
गायत्री परिवार बनाना,
बच्चों का कोई खेल नही,
लाखों लोगों का जुड़ जाना,
संयोगों का मेल नहीं ।14।
जिसने इसको तप से सींचा,
केवल वही जानता है,
जो अपना सर्वस्व लुटाये,
केवल वही मानता है ।15।
तुमने कैसे सोच लिया तुम
जो भी करोगे अच्छा है,
तुम ही हो एक काग सयाने,
बाकी सब जग कच्चा है ।16।
उनकी काली करतूतों से,
अपना कोई मेल नहीं ।
ये मिशन बुलेट ट्रेन है,
कोई पैसेंजर मेल नहीं ।17।
इन दागों को कालनेमियों ,
अब जाने कहाँ छुपाओगे,
रेत में गाड़ के अपना मुंह अब
शुतुरमुर्ग हो जाओगे ।18।
*- सुधीर भारद्वाज*
बहुत सुन्दर भाईसाब, जबरदस्त...
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