वक़्त है तरुणाई का

अब नयी करवट है बदली, वक़्त है तरुणाई का,

छोड़कर तन्द्रा-प्रमादी, सुबह की अरुणाई का,

खेल पूरा हो चूका अब मलिन-मन परपीड़कों का,

हम न किंचित हों विलंबित, अब समय भरपाई का |


अब निवेदन का नहीं है, अब समय धिक्कार का,

आस्था-आदित्य पर छाये हुए खग्रास का,

उलटे पासे पड़ गए, न उनको अब कुछ सूझता,

काल भी विकराल है, बीता समय नर्माई का |


उनके चेहरों पर लगा था रंग-ओ-रोगन द्रोह का 

एक क्षण में बह गया, जो रंग था विद्रोह का   

पाप का संताप अब मलिन मुख पर दीखता है,

बोझ भारी है बहुत जीवन में इस रुसवाई का |



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