एक निवेदन भक्तजनों से


जिनका लहू लवण से हीन ,उनका मनोबल  दुर्बल-दीन,

कालनेमि से करो न यारी , महाकाल सब लेगा छीन |

आदर्शों का महिमा-मंडन, वाणी मात्र शब्दों का नर्तन ,

सूत्रपात में षडयंत्रों के , नेपथ्य भूमिका थी संगीन |


जीवन खपा दिया क्या पाया? जो अपना था हुआ पराया,

साथी सब बिछड़े राहों में, जैसे ढाक के पत्ते तीन |

यदि कुचक्र को न अपनाते, नयी राह तुम फिर पा जाते,

कोई दोष तुम्हे न देता , तुम न रहते यूँ  ग़मगीन |


अब भाई इतना ही करना, मिला जो अपयश, उसको सहना ,

कुटिल चाल सब छोड़-छाड़ के, प्रायश्चित में रहना लीन|

- सुधीर भारद्वाज 


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