जैसी करनी वैसा फल - आज नहीं तो निश्चय ही कल

तुमने नज़र  जहाँ भी डाली,

दृष्टि तुम्हारी काली काली,

पल्ले नहीं पड़ा कुछ भी जब,

हाथ रह गया बिल्कुल खाली ।

 

था ये मिशन कष्ट से आकुल ,

मौन तुम्हारा, भावहीन मुख,

परिजन थे पीड़ा से व्याकुल,

नाच रहे तुम दे-दे ताली ।

 

ऐसी भी क्या थी मजबूरी,

मुख में राम बगल में छूरी,

हमने समझा कंक  होगा ,

दाल निकल गयी पूरी काली |

 

मन में छुपा हुआ घमंड था,

क्रोध तुम्हारा अति प्रचंड था,

आने वाली संतति पूछे,

क्यों छेदी अपनी ही थाली ?

 

बाहर से थे उत्कट तापस,

अन्दर से थे कृष्ण अमावास ,

टूट गया सब, छूट गया सब,

जीवन बना रहा जंजाली |

 

पर उपदेश कुशल बहुतेरे,

बगुला भगत मित्र थे मेरे,

बा खा गयी खेत को खुद ही,

जिसको करनी थी रखवाली |

 

गुरु ने कुंदन जैसा तपाया,

माता ने हर क्षण दुलराया,

खुद ही निज उपवन उजाड़कर,

दीवाना सा फिरता माली |

 

यदि शत्रु कोई आ जाये,

काल बनें, उस पर छा जायें,

भितरघात तो घृणित बहुत है,

है यह चाल दुश्मनों वाली |

 

तुमने अपना मार्ग न बदला,

सोचा नहीं कदम क्या अगला ?

अंत समय पछताना होगा,

किस्मत ऐसी फूटी साली|

             - सुधीर सोनी

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