तेरा ही नूर नज़र आता है

सच कहूँ हर चेहरे पर तेरा ही नूर नज़र आता है,
मंदिरो मस्जिदों से पर  तू बड़ा दूर नज़र आता है |

लड़ तो लेता है जमाने से वो हिम्मत बांधकर ,
खुद से हो सामना तो वो मजबूर नज़र आता है |

जिसने पायी है शोहरत  दुनिया से छलावा करके,
न जाने क्यूँ वही  मशहूर नज़र आता है |

जब झूठ पर रंगत चढ़ा देती है दुनिया सच की ,
ज़िंदा रहने का यही दस्तूर नज़र आता है |

कई जन्मों तक नहीं छोड़ेगी वो दामन  उसका
जिसके माथे पर सज़ा सिंदूर नज़र आता है | 

जिसके होठों  से हंसी झरती है हरसिंगारों  सी,
उसके अंदर भी कोई नासूर नज़र आता है |

वो जो कहता था कि होगी जीत अंतिम सत्य की,
उसकी बातों मे मुझे कोई फितूर नज़र आता है |

आज सुबह जो बढ़ा था घन तिमिर को रौंद कर
सूर्य भी अब  श्रम से थककर चूर नज़र आता  है |

कल तलक सिमटा जो रहता था लिबास-ऐ-शर्म में
आज वो महफिल में तेरी  भरपूर नज़र आता है |

-सुधीर
-१२ अक्टूबर 2019!










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