क्षणिकाएँ
कच्ची मिटटी के मनुज
आंवे सा संसार |
केवल वाह्य प्रसन्नता
अन्दर है आकाश ||
निज हित साधन ही रहा
जिनका प्राथमिक कर्त्तव्य |
उनकी बुद्धि से परे
जीवन का मंतव्य ||
जो शिश्नोदर ही रहे
निज लाभ हानि में व्यस्त |
उनका जीवन बन गया
निःसार, निरर्थक, त्रस्त ||
दो पहलु एक बात के
पर उनका अंतर जान |
शिक्षा देती सूचना
विद्या देती ज्ञान ||
भोजपत्र पर वेद ऋचा सा
अंकित है गुरुज्ञान |
धारण करने से मिटे
जीवन का अज्ञान ||
कमल पत्र पर ओस बिंदु सा
मन अस्थिर गतिमान |
गुरुचरणों के ध्यान से
हो अविचल, अटल, महान ||
-सुधीर
11 Oct. 2019
11 Oct. 2019
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