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Showing posts from June, 2021

ये दिल दुनिया के सवालों का जवाब नहीं रखता

ये दिल दुनिया के सवालों का जवाब नहीं रखता । जिसे चाहता है बेहिसाब  मिलने का हिसाब नही रखता ।  खुदा से मुहब्बत मेरी आँखों से झलकती है । यकीं दिलाने को पहली या आखरी किताब नहीं रखता ।  रोज़ बुनता हूँ नया ख्वाब फिर उम्मीदों का, ये पूरा भी होगा कभी ऐसे ख़यालात नहीं रखता ।  मुझे मालूम है दिल में वो क्या सोचता होगा, वो अपने लबों पर कभी दिल की बात नहीं रखता ।  इन पर होके गुज़रा वो आगे रुक गया या पहुंचा मंज़िल पर, सराये का मालिक मुसाफिर से कोई इक्तेफ़ाक नहीं रखता।  चंद टुकड़ों की खातिर जो झुक गया है उनके कदमों पर, मुझे यकीं है वो शख्स मुंह मे ज़ुबान नहीं रखता।  तुम चाहते थे हम टूट जाएं, हमने तुम्हे टूट के चाहा है, सुधीर कभी किसी का बांकी हिसाब नहीं रखता ।

लिखा था

उनके हिस्से में तो केवल शब्दों का व्यापार लिखा था, हमने जब लिखना सीखा था, सबसे पहले प्यार लिखा था।  सावन की मेहँदी जो रचकर निखरी थी वो मिट भी गयी, अब भी वैसी की वैसी है, जहाँ पे तेरा नाम लिखा था ।  जीवन के पन्नो पर अंकित इच्छाएँ मृग मरीचिका हैं, इसीलिए तो हमने  उसपर भी केवल वैराग्य लिखा था ।  न जाने कितने डूबे हैं केवल चुल्लूभर पानी में, पत्थर भी वे तैर गये जिसपर केवल राम लिखा था ।  जो पथ पर थककर बैठ गए वो देर से मंज़िल पाएंगे, अपनी किस्मत है कुछ  ऐसी, कभी नहीं आराम लिखा था । न जाने कितने खंज़र हैं जिस्म में मेरे लगे हुए,  इस दिल पर जो जाकर बैठा उसपर तेरा नाम लिखा था ।

मन का संग्राम

मैं सदा प्यासी नदी हूँ प्यार की, रीत मुझको रोकती संसार की, कौन मन को बाँध पाया है कभी, मन के इस संग्राम में हारे सभी । आज हमने है छुआ जिसको पुलककर, दूर हो जाएगा वो पल में छिटककर, माझी बिना कैसे ये पहुंचे पार नैया, सलवटों के बोझ से बोझिल है शैया । मन के घट में है क्षुधा संचित हुई, प्यासे अधरों से सदा वंचित हुई, ज़िन्दगी की पाति कोने से फटी है, भाग्यरेखा है नहीं गहरी, कटी है । मुझको लगता है यदि संसार न होता, फिर किसी को भी किसी से प्यार न होता, क्या ये बंधन मन को कभी भी भायेगा, यह सुनिश्चित है कि जी भर जाएगा । मौन पीले पात सा झर जाएगा, जब हमारा मीत सम्मुख आएगा फिर खुलेंगे बंधन सभी संकोच के, आज हैं हर्षित बहुत ये सोच के।

सुख-दुख

सुख दुःख तो ताना-बाना है, इसको जिसने पहचाना है, उसका जीवन काँटों में भी, फूलों सा मुस्काना है । भाग्य यदि होता सबकुछ, पुरुषार्थ मनुज फिर क्यों करता, सप्त सिंधु के पार कभी, मानव फिर पाँव नहीं धरता । उच्च हिमालय शिखरों पर, हमने ध्वज अपना फहराया, नभ के पार भी पहुंचे हम, उत्साह हमारा लहराया । मरुथल की बंजर मिट्टी में, उद्यान लगाये हैं हमने भूमि के अंदर जाकर भी, नवरत्न निकाले हैं हमने । हमने अपने भुजबल से, नदियों का मार्ग भी मोड़ा है, अपने ही हाथों से हमने, गिरी का घमंड भी तोड़ा है । कितना भी भीषण सागर हो, साहस ने हार न मानी है उत्ताल विकट लहरों से भी, हमने लड़ने की ठानी है । p

ग़ज़ल

ये दिल दुनिया के सवालों का जवाब नहीं रखता । जिसे चाहता है बेहिसाब  मिलने का हिसाब नही रखता । खुदा से मुहब्बत मेरी आँखों से झलकती है । यकीं दिलाने को पहली या आखरी किताब नहीं रखता । रोज़ बुनता हूँ नया ख्वाब फिर उम्मीदों का, ये पूरा भी होगा कभी ऐसे ख़यालात नहीं रखता । मुझे मालूम है दिल में वो क्या सोचता होगा, वो अपने लबों पर कभी दिल की बात नहीं रखता । इन पर होके गुज़रा वो आगे रुक गया या पहुंचा मंज़िल पर, सराये का मालिक मुसाफिर से कोई इक्तेफ़ाक नहीं रखता। चंद टुकड़ों की खातिर जो झुक गया है उनके कदमों पर, मुझे यकीं है वो शख्स मुंह मे ज़ुबाँ नहीं रखता। तुम चाहते थे हम टूट जाएं, हमने तुम्हे टूट के चाहा है, *सुधीर* कभी किसी का बांकी हिसाब नहीं रखता ।