ये दिल दुनिया के सवालों का जवाब नहीं रखता
ये दिल दुनिया के सवालों का जवाब नहीं रखता । जिसे चाहता है बेहिसाब मिलने का हिसाब नही रखता । खुदा से मुहब्बत मेरी आँखों से झलकती है । यकीं दिलाने को पहली या आखरी किताब नहीं रखता । रोज़ बुनता हूँ नया ख्वाब फिर उम्मीदों का, ये पूरा भी होगा कभी ऐसे ख़यालात नहीं रखता । मुझे मालूम है दिल में वो क्या सोचता होगा, वो अपने लबों पर कभी दिल की बात नहीं रखता । इन पर होके गुज़रा वो आगे रुक गया या पहुंचा मंज़िल पर, सराये का मालिक मुसाफिर से कोई इक्तेफ़ाक नहीं रखता। चंद टुकड़ों की खातिर जो झुक गया है उनके कदमों पर, मुझे यकीं है वो शख्स मुंह मे ज़ुबान नहीं रखता। तुम चाहते थे हम टूट जाएं, हमने तुम्हे टूट के चाहा है, सुधीर कभी किसी का बांकी हिसाब नहीं रखता ।