सब अपनी अपनी सुनाने में लग गए
जल चुका है घर मेरा अमावस से जंग में, तुम पूर्णिमा के दीप जलाने में लग गए। सब साज़ टूटे हैं यहाँ, वीणा भी मौन है, कुछ लोग राग खुद का सुनाने में लग गए । संयोग से वानर को तख्त-ओ-ताज मिल गया, जंगल के शेर दुम को हिलाने में लग गए । दो भाई लड़ पड़े हैं पिता की ज़मीन पर, और दोस्त सभी द्वंद बढ़ाने में लग गए । बरसात आयी रंग मुखौटों का धुल गया, कुछ फिर नए मुखौटे बनाने में लग गए । औलाद मरी भूख से , पिता रो भी न सका, घड़ियाल आके आँसू बहाने में लग गए । जो ज़ख्म मिले थे तेरी दुनिया में बसर कर , बरसों उन्हें दुनिया से छुपाने में लग गए । उसकी ज़ुबां न कर सकी दुख-दर्द की बातें, महफ़िल में सभी चुटकुले सुनाने में लग गए -- सुधीर भारद्वाज