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Showing posts from June, 2022

सब अपनी अपनी सुनाने में लग गए

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जल चुका है घर मेरा अमावस से जंग में, तुम  पूर्णिमा के दीप जलाने में लग गए।  सब साज़ टूटे हैं  यहाँ, वीणा भी मौन है, कुछ लोग राग खुद का सुनाने में लग गए ।  संयोग से वानर को तख्त-ओ-ताज मिल गया, जंगल के शेर दुम को हिलाने में लग गए ।  दो भाई लड़ पड़े हैं पिता की ज़मीन पर, और दोस्त सभी द्वंद बढ़ाने में लग गए ।  बरसात आयी रंग मुखौटों का धुल गया, कुछ फिर नए मुखौटे बनाने में लग गए ।  औलाद मरी भूख से , पिता रो भी न सका, घड़ियाल  आके आँसू बहाने में लग गए ।  जो ज़ख्म मिले थे तेरी दुनिया में बसर कर , बरसों उन्हें दुनिया से छुपाने में लग गए । उसकी ज़ुबां न कर सकी दुख-दर्द की बातें, महफ़िल में सभी चुटकुले सुनाने में लग गए                         -- सुधीर भारद्वाज

सब तरफ फैली हुई है अब उदासी

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*सब तरफ बिखरी हुई है अब उदासी* आजकल शामें उदास सब घरों में, लोग रहते बदहवास अब घरों में।  रिश्तों का कोई न कोई नाम है पर अजनबी से लोग रहते अब घरों में ।  अब नहीं सुनता कहानी कोई बच्चा, गूँगी हो गयी सब किताबें अब घरों में।  घर के  आँगन अब सभी सूने पड़े हैं, हर किसी का अपना कोना है घरों में ।  घर की अटारी में पड़े चौपड़-खिलौने, हाथ में मोबाइल सबके अब घरों में,  राह तकता गाँव की अमराई में झूला, पढ़ के, थक के सो गए बच्चे घरों में ।  खिड़कियाँ सब बन्द रखते हैं  यहाँ पर, कोई दहशत सी भरी है अब घरों में ।                             - सुधीर भारद्वाज