गुरुवर के प्रति
अद्यतन इस यात्रा में आपको ही साथ पाया, जब कभी हम थके हारे आपने साहस बँधाया, पाँव में छाले पड़े तो आपने मरहम लगाया, जब भ्रमित होकर रुके हम आपने रस्ता दिखाया । हमने जब देखा पलटकर एक दुर्गम राह थी ये, विकराल लहरों से उलझ टूटी हुई पतवार थी ये, आपके सम्बल से हमने फिर नया गतिमान पाया, लाँघकर भीषण भयंकर दौर हमने ठौर पाया । अनगिनत पल याद हैं जब हम ठिठककर रुक गए थे, मोह के बंधन थे भारी बोझ से हम झुक गए थे, था तुम्हारा हाथ सर पर, न कोई हमको रोक पाया, रास्ता सबने दिया न कोई हमको टोक पाया । थामकर ऊँगली तुम्हारी हम भला कैसे भटकते, लोभ के भव-बंधनों में हम भला कैसे अटकते, जब कभी असमंजसों में मन अकिंचन छटपटाया, तब तुम्हारी प्रेरणा ने मार्ग सर्वोत्तम दिखाया। रक्त की बूँदें सभी, हर श्वांस, ये जीवन तुम्हारा, सार्थक हर क्षण हुआ अनुदान है अनुपम तुम्हारा, आज हर्षित हैं बहुत हम, धन्य है जीवन हमारा , जन्म जन्मान्तरों तक होगा हम पर ऋण तुम्हारा | - सुधीर १ सितम्बर २०१९ शांतिकुंज- हरिद्वार