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Showing posts from September, 2019

गुरुवर के प्रति

अद्यतन इस यात्रा में आपको ही साथ पाया, जब कभी हम थके हारे आपने साहस बँधाया, पाँव में छाले पड़े तो आपने मरहम लगाया, जब भ्रमित होकर रुके हम आपने रस्ता दिखाया । हमने जब देखा पलटकर एक दुर्गम राह थी ये, विकराल लहरों से उलझ टूटी हुई पतवार थी ये, आपके सम्बल से हमने फिर नया गतिमान पाया, लाँघकर भीषण भयंकर दौर हमने ठौर पाया । अनगिनत पल याद हैं जब हम ठिठककर रुक गए थे, मोह के बंधन थे भारी बोझ से हम झुक गए थे, था तुम्हारा हाथ सर पर, न कोई हमको रोक पाया, रास्ता सबने दिया न कोई हमको टोक पाया । थामकर ऊँगली तुम्हारी हम भला कैसे भटकते, लोभ के भव-बंधनों में हम भला कैसे अटकते, जब कभी असमंजसों में मन अकिंचन छटपटाया, तब तुम्हारी प्रेरणा ने मार्ग सर्वोत्तम दिखाया। रक्त की बूँदें सभी, हर श्वांस, ये जीवन तुम्हारा, सार्थक हर क्षण हुआ अनुदान है अनुपम तुम्हारा, आज हर्षित हैं बहुत हम, धन्य है जीवन हमारा , जन्म जन्मान्तरों तक होगा हम पर ऋण तुम्हारा | - सुधीर १ सितम्बर २०१९ शांतिकुंज- हरिद्वार

जो चाहा वो मिल न पाया

इन्सा अब मजबूर हो गया, थक के गम से चूर हो गया, खोजे उसने अमित लोक पर, खुद से कितना दूर हो गया | जाने कितने दीप जलाये, घर, देहरी और द्वार सजाये,| बाहर का अँधियारा भागा, अंतर्मन बेनूर हो गया | रूप बनाया बहुत सजीला, अंतस हो ना सका चमकीला, काया कंचन सी निखरी पर, अन्दर से लंगूर हो गया | शब्द मंच तक ही हैं सीमित , हुआ ना उन से कभी लोकहित, पोथी की बातें रट-रट के, तोतों सा मशहूर हो गया | मुर्गे ने जब बांग लगाई, समझा मैंने सुबह बुलाई , प्राची से जब निकला सूरज,  अहंकार तब चूर हो गया | अगणित सगरपुत्र हैं मूर्छित, किन्तु भगीरथ खड़े अविचलित, भस्मासुर है बनी मनुजता  जीवन अब  नासूर हो गया | जो चाहा  वो मिल न पाया, एड़ी-चोटी जोर लगाया , मन तो है  चालाक लोमड़ी, पर खट्टा अंगूर हो गया |