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Showing posts from December, 2021

ये दुनिया

हमारे सामने तो प्रश्न अब जीवन मरण का है, तुम्हारे पास है उत्तर वो केवल उद्धरण का है, नहीं देखे कभी सपने तुम्हारे हिस्से के हमने, हमारी कामना है पाँव चादर में रहें अपने । उनके आंसुओं का तोड़ भी घड़ियाल है केवल, सहज संवेदना होगी , ये  झूठा ख्याल है केवल, कभी मछली के लालच में यदि जप भी लगे करने, भगत कहना नहीं उसको, वो बगुला है निपुण छलमें । सपने बेचते हैं वो सुनहरा आवरण करके, खंजर भी छुपा लेते,अधर पर हास्य धर करके, हैं जिनके रूप के चर्चे वो रखते पेट में दाढ़ी, अदालत चलती है झूठी शपथ गीता की ख़ाकरके। इन चेहरों के भोलेपन से तुम रहना जरा बच के, सोने की परख होती कसौटी पर सदा कस के, कभी मिलती नहीं मंजिल किसी के कंधे पर चढ़के, सफलता मिलती है हरदम स्वयं पुरूषार्थ ही करके । - सुधीर भारद्वाज

खुद को खुदा बताने वाले लोग

सिमट गए  इतिहास की किताबों में, खुद को खुदा बताने वाले लोग आपक दर्द पर खिलखिलाते हैं, आपको अपना बताने वाले लोग, दिल से  पाकसाफ  होते  है, चार रोटी कमाने वाले लोग, एक खंजर  भी छुपा के रखते  हैं, आपको सीने से लगाने वाले लोग, बहुत बदरंग भी हैं अंदर से, यूँ ही  गुलाल उड़ाने वाले लोग, खुद भी लहूलुहान होते हैं, राह में कांटे बिछाने वाले लोग, दिल में एक दर्द  लेके जीते हैं, अकसर गुनगुनाने वाले लोग, जाने किस उम्मीद पर जीते हैं, ज़िंदगी  से धोखा खाने वाले लोग । दूर रह के भी दिल के पास होते हैं, वक़्त पे काम आने वाले लोग ।                         - सुधीर भारद्वाज