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विघ्नसंतोषी शुभचिंतकों को समर्पित

आपके सब पारितोषिक आपको ही हों मुबारक, यह मन सदा गुरुवर के पथ पर हैं चला, चलता रहेगा ।  आपको जो भी मिला है वह कदाचित भाग्य होगा, हमने जो संतोष पाया वह सदा अक्षुण रहेगा ।  है नहीं हमको गरज दरबारी बन हम सर झुकाएं, यह शीश ऊँचा है रहा सम्मान से अब भी रहेगा ।  आपकी सब मान्यताएं आपने खुद ही बनाईं, सत्य का अनुभव कसौटी पर सदा कसकर मिलेगा ।  आप अपनी  ही परीधि  में उलझकर  सोचते हैं, सत्य तो है सार्वभौमिक वह सदा फूले फलेगा ।  आपका अपने मुर्गे की भी चोंच चाहे तोड़ दो, जब सुबह आएगी सूरज रोकने से न रुकेगा ।  आपकी बातों के लच्छे मुग्ध करते हैं सभी को, पर निहित मंतव्य का विष अब भला कब तक छुपेगा ।  इसलिए परवाह हमने की नहीं, न अब करेंगे, कारवाँ यह चल पड़ा है, रोकने से न रुकेगा ।                                   -  सुधीर भारद्वाज